पितृ पक्ष विशेष गया जी
भारतीय संस्कृति सनातन धर्म मे पितृ ऋण से मुक्त होने लिये अपने पिता -माता तथा परिवार के मृत प्राणियों के निमित श्राद्ध करने कीअनिवार्य आवश्यकता बताई गई है । श्राद्ध कर्म को पितृ कर्म भी कहते है ।पितृ कर्म से तातपर्य पितृ पूजा से है ।
सामान्यतः कई लोग माता पिता के मृत्यु के उपरांत और्ध्वदेहिक संस्कार ,दशगात्र ,सपिण्डन आदि संस्कार तो करते है ,परन्तु आलस्य औऱ प्रमादवश गया तीर्थ जाकर पिण्डदान श्राद्ध करने का महत्व नही समझते ।
किसी को संतान नही होती या विपत्तियां आते रहती है तो बताया जाता है कि इसका कारण पितृदोष है ,गया श्राद्ध से इसका निवारण हो सकता है ,तब वे अपने कामना के पूर्ति के गया श्राद्ध को जाते है ,किन्तु गया श्राद्ध पुत्रों का कर्तव्य है ।
प्रेत प्रेतत्वनिर्मुक्त: (वायु पुराण ) गया जी मे पिण्डदान से प्रेतों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
यह गया तीर्थ पितरों को अत्यंत प्रिय है पितृणाम चातीवल्लभम । (कूर्म पुराण )
गयायां पितृरूपेण स्वमेव जनार्दन:।।तं दृष्ट्वा पुण्डरीकाक्षं मुच्यते वै ऋणत्रयात ।
तरिता: पितरस्तेण स याति परमां गतिम।