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By : admin

हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इनमें कोई भाव या स्नेह है और ना ही किसी भी शुभ अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं ,और ना ही दान -पुण्य , तिलतर्पण ,ब्राह्मण भोजन तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है।

पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों के रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,हमारे आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से , श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।

इसके लक्षण मानसिक अवसाद,व्यापार में वृद्धि न होना ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है । पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितनी भी पाठ ,देव अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता। पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है
१. अधोगति .वाले पितरों के कारण
२. उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण

अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, अतृप्त इच्छाएं ,सम्पति के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का उचित निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।

इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृ सफल नहीं होने देते। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ? जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।

इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है। अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ।

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