ॐ नमो नारायणाय ॐ गदाधराय नमः
पृथ्वियां च गया पुण्या गयायां च गायशिरः।श्रेष्ठम तथा फल्गुतीर्थ तनमुखम च सुरस्य हिं।। श्राद्धरम्भे गयायं ध्यात्वा ध्यात्वा देव गदाधर ।स्व् पितृ मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्ध समाचरेत ।। श्री गया तीर्थ कि महिमा तो अनन्त हैं जिसका उल्लेख हमें समस्त पुराणों में मिलता है । गया तीर्थ श्राद्ध श्रेष्ठ पावन भूमि है यहाँ भगवान विष्णु नारायण गदाधर विष्णु पाद के रूप में स्थित है ।जो अपनी शक्ति से सभी प्रकार के पापो का नाश कर मनोनुकूल फल प्रदान करते है ,तथा उनके सभी असंतृप्प्त पितरों को तृप्ति मुक्ति प्रदान करते है ।
शास्त्रो में मुक्ति प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त किए है ।जिसमे सबसे सुलभ एवम उपयुक्त्त गया श्राद्ध है ब्राह्मज्ञानम गयाश्राद्धम गोगृहे मरणं तथा , वासः पुसाम कुरुक्षेत्रे मुक्तिरेषां चतुर्विधा । ब्रह्मज्ञानेंन किंम कार्य: गोगृहे मरणेन किंम, वासेंन किं कुरुक्षेत्रे यदि पुत्रो गयाम व्रजेत।। पुत्रो को गया तीर्थ पुत्र होने कि संज्ञा और अधिकार देता है ।
गया श्राद्ध करना पुत्र का कर्तव्य है।ऐसा न करने पर उनके पितर और शास्त्र दोनों ही पुत्र होने की संज्ञा नहीं देते ।शास्त्रो के श्लोकानुसार पुत्र का कर्तव्य निर्धारित है श्लोक – जीवते वाक्यकरणात क्षयायः भूरी भोजनात।
गयायां पिंडदानेषु त्रिभि पुत्रस्य पुत्रता (गरुड़ पुराण ,स्कन्द पुराण ) जीवित अवस्था में माता पिता के (वाक्य ) आज्ञा का पालन करना प्रथम कर्तव्य है ,मरणोपरांत भूरी भोजन कराना द्वितीय कर्तव्य है , तथा गया श्राद्ध करना तृतीय कर्तव्य है श्लोकानुसार इन तीनो कर्तव्यों का निर्वहन करने पर ही पुत्र को पुत्रत प्राप्त होती है,अन्यथा वे पुत्र कहलाने योग्य नहीं । पु0 नाम नरकाय त्रायते इति पुत्र : (गरुड़ पुराण ) पुत्र वही है जो अपने पितरों को पु0नाम नामक नर्क से मुक्ति दिलाता हो ।
अतः मानव का परम कर्तव्य है कि पितृगणों के उद्धार एवं प्रसन्नता के निमित्त गया श्राद्ध करे अवश्य करे और अपने पुत्रत्व को सार्थक बनाये । शास्त्रों में वर्णित गया -श्राद्ध का लाभ भौतिक जीवन के आशातीत आकांक्षाओ से भी अधिक लाभ है उदाहरणतः वह कार्य जो एक मानव का भूप नरेश होने पर भी कर पाना उसके लिये संभव नहीं है ।
कुछ ऐसा ही फलदायीं है गया श्राद्ध । ततो गया समासध बर्ह्मचारी समाहितः। अश्वमेधवाप्नोति कुलः चैव समुद्धरेत।।(वायु पुराण ) जो व्यक्ति गया जाकर एकाग्रचित हो विधिवत ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है एवं समस्त कुलों का उद्धार करता है आयु : प्रजा : धनं विधां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च । प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्धप्रिता ।।(मार्कण्डे पुराण याज्ञ स्मृति) श्राद्धकर्ता को उनके पितर द्रिघायु ,संतति ,धनधान्य , विद्या राज्य सुख पुष्टि ,यश कृति ,बल, पशु ,श्री ,स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते है |