बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय क्या है? आपकी जिज्ञासा को शांत करने हेतु यह आलेख प्रस्तुत किया है । हमारे जन्म के साथ ही हमारे ऊपर तीन ऋण होते हैं
1. देव ऋण
2. पितृ ऋण
3. ऋषि ऋण
पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनके हम सदैव ऋण होते है ,क्योंकि हमारे जीवन में उनके किये गए अनेकों उपकार होते है । अतः पितृऋण से मुक्त होने के लिये सदैव प्रयासरत होना आवश्यक है । मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस मृत के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक पुत्र पौत्र ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे वे अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है। बहुत कम ही ऐसे जीव आत्मा होते है जो अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग की यात्रा करते है या परमात्मा में समाहित होते है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता । मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी जीव आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।